मैं अगर कहूँ कि
तुम्हारा ईश्वर प्रेम एक दिखावा मात्र है, तो तुम नाराज हो जाओगे | उस प्रेम को एक
शब्द भर कहूँ, तो तुम बिखर जाओगे | दरअसल इस तरह का प्रेम, प्रेम के त्रिकोण में
नहीं ठहरता | यह तो एक जबरदस्ती है, जो तुम झूम झूमकर कर रहे हो | एक बार उठकर,
कपडे झाड़कर अपने भीतर झांको | इस दृष्टी में रत्ती भर भी दृष्टीदोष न हो | सबको
भले ही धोखा दो, मगर कम से कम अपने आप को धोखा मत देना | सर से पांव तक, शरीर से
आत्मा तक स्वयं में झांको | देखो तुम्हारा प्रेम कहीं डर से तो नहीं है? कहीं नरक
के खौलते तेल और धधकती आग से डर कर तो ईश्वर की तरफ नहीं भाग रहे हो? अगर तुममें
डर के कारण प्रेम है तो यह प्रेम पहले दर्जे का झूठा है | जहाँ प्रेम होगा, वहां
डर कहाँ होगा? प्रेम की दूसरी कड़ी को देखो | जब ह्रदय कहे कि तुम्हें ईश्वर ने
क्या-क्या नहीं दिया | इसलिए उसे प्रेम करो, तो यह प्रेम सिर्फ व्यापार है | तुम
भोजन, धन, घर, खुशियों के लिए कृतज्ञ होकर यदि ईश्वर से प्रेम करते हो तो यह दुसरे
दर्जे का झूठा प्रेम है | ऐसा प्रेम किसी को ख़ुशी नहीं दे सकता | जो प्रेमभाव
स्वार्थ पर टिका हो उसे ईश्वर के प्रेम में लाना गलत है | ईश्वर को प्रेम करो या न
करो, वह अच्छा बुरा करता ही रहेगा | इसलिए प्रेम का यह रूप भी ईश्वर के निकट नहीं
पहुँचता | अब आते हैं प्रेम की प्रतियोगिता पर | यदि तुम्हे लगता है कि ईश्वर से
प्रेम में कोई तुमसे आगे है और कोई तुमसे पीछे, तो समझ लो कि तुम्हारा प्रेम खोखला
है | ईश्वर से प्रेम करने में न तो डर और व्यापार माध्यम बनना चाहिए | और ना हि
प्रतियोगिता | यह तो स्वतः निःस्वार्थ भाव से प्रगट होना चाहिए | यदि ऐसे प्रेम
जिसमे निःस्वार्थ भाव न होकर अन्य तीनो (डर, व्यापार,प्रतियोगिता) का समावेश हो |
वह प्रेम नहीं, एक छलावा मात्र है | और ऐसे छलावा-रूपी प्रेम से हम कभी भी ईश्वर
की कृपा नहीं पा सकते |
so good bhai sahi me pyar ek dikhawa hai
ReplyDelete