Monday, 28 November 2016

कबीर जी के दोहे- अर्थ सहित ||



हैलो दोस्तों कैसे है आप ? आप सभी का मेरे इस ब्लॉग में स्वागत है
आज मैं आप लोगो के लिए एक ऐसी संग्रह लेकर आया हु.. जिसे कई लोगो ने पहले भी पढ़ा होगा| और कई लोग नहीं भी पढ़े होंगे या कुछ अंश पढ़े होंगे... आज जो संग्रह मैंने आप लोगो के लिए लाया है.. वो है .. “कबीर जी के दोहे” दोस्तों आज भी कबीर जी के दोहे उतने ही महत्वपूर्ण, प्रभावी एवं चरितार्थ है.. जितने पूर्व में कहे एवं लिखे गये थे.. और आज भी यदि कोई भी मनुष्य अपने जीवन में तनिक भी इसका चिंतन करे और उसमे अमल करे तो मैं समझता हु उसका जीवन बहुत ही सार्थक सिद्ध हो सकता है .. मेरी शुरू से यही कोशिश रही है और रहेगी की मैं आप लोगो को ज्यादा से ज्यादा ज्ञानवर्धक एवं उपयोगी जानकारी आप लोगो के साथ साझा कर सकू जिससे आप लोगो को और अधिक से अधिक लाभ मिल सके |





बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय|

अर्थ :- जब मैं इस संसार में बुराई खोजने चला तो मुझे कोई बुरा न मिला | जब मैंने मन में झाँका तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है.

पोथी पढ़ी पढ़ी जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय|    

अर्थ :- बड़ी बड़ी पुस्तक पढ़कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुच गए है, पर सभी विद्वान न हो सके, कबीर जी मानते है है कि यदि कोई प्रेम या प्यार के केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह पढ़ ले, अर्थात प्यार का वास्तविक रूप पहचान ले तो वही सच्चा ज्ञानी होगा |

साधू ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,
सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय |

अर्थ:- इस संसार में ऐसे सज्जनों की जरुरत है जैसे अनाज साफ़ करने वाला सूप होता है, जो सार्थक को बचा लेंगे और निरर्थक को उड़ा देंगे |

तिनका कबहूँ ना निंदिये, जो पावन तर होय,
कबहूँ उडी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय |

अर्थ:- कबीर जी कहते है कि एक छोटे से तिनके की भी कभी निंदा न करो जो तुम्हारे पांवों के निचे दब जाता है , यदि कभी वह तिनका उड़कर आँख में आ गिरे तो कितनी गहरी पीड़ा होती है |

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सीचे सौ घड़ा, ऋतू आए फल होय |

अर्थ:- मन में धीरज रखने से सब कुछ होता है , अगर कोई माली किसी पेड़ को सौ घड़े पानी से सिचने लगे तब भी फल तो ऋतू आने पर ही लगेगा |

माला फेरत जग भया, फिरा न मन का फेर,
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर |

अर्थ:- कोई व्यक्ति लम्बे समय तक हाथ में लेकर मोती की माला तो घुमाता है, पर उसके मन का भाव नहीं बदलता, उसके मन की हलचल शांत नहीं होती, कबीर जी की ऐसी ब्यक्ति को सलाह है कि हाथ की इस माला को फेरना छोड़ कर मन के मोतियों को बदलो या फेरो |

जाति न पूछो साधू की, पुच लीजिये ज्ञान,
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान |

अर्थ:- सज्जन की जाति न पूछ कर उसके ज्ञान को समझना चाहिए, तलवार का मूल्य होता है न कि उसकी म्यान का |

दोस पराये देखि करि, चला हसंत हसंत,
अपने याद न आवई, जिसका आदि न अंत |

अर्थ:- यह मनुष्य का स्वभाव है कि जब वह दुसरो के दोष देख कर हस्त है, तब उसे अपने दोष याद नहीं आते जिनका न आदि है, न अंत |

जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,
मैं बपुरा बुडन डरा, रहा किनारे बैठ |

अर्थ:-  जो प्रयत्न करते है, वे कुछ न कुछ वैसे ही पा ही लेते है जैसे कोई मेहनत करने वाला गोताखोर गहरे पानी में जाता है और कुछ ले कर आता है, लेकिन कुछ बेचारे लोग ऐसे भी होते है जो डूबने के भय से किनारे पर ही बैठ रह जाते है और कुछ नहीं पाते है |

बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि,
हिये तराजू तौली के, तब मुख बाहर आनि |

अर्थ:- यदि कोई सही तरीके से बोलना जानता है तो उसे पता है कि वाणी एक अमूल्य रत्न है | इसलिए वह ह्रदय के तराजू में तौलकर ही उसे मुह से बाहर आने देता है |

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