Sunday, 4 December 2016

वास्तविक सुख किसमे है ?



भारतवर्ष में सम्राट समुद्रगुप्त प्रतापी सम्राट हुए थे | लेकिन जीवन क्षेत्र में सामने आने वाली विभिन्न प्रकार की चिंताओं से वह भी नहीं बच सके | एक समय ऐसा आया जब की चिन्ताओ के कारण वह काफ़िर परेशान से रहने लगे | चिन्ताओ का चिंतन करने के लिए एक दिन वह वैन की ओर निकल पड़े | वह रथ पर थे, तभी उन्हें कहीं से बांसुरी की सुरीली तान सुनाई दी | उन्होंने सारथी से रथ धीमा करने को कहा, कुछ दूर जाने पर समुद्रगुप्त ने देखा कि झरने और उनके पास मौजूद वृक्षों की आड़ में एक व्यक्ति बांसुरी बजा रहा था | पास ही उसकी भेड़े घास चर रहीं थी | राजा ने कहा, आप तो इस तरह प्रसन्न होकर बांसुरी बजा रहे हैं, जैसे कि आपको किसी देश का साम्राज्य मिल गया हो | युवक बोला, श्रीमान आप दुआ करें कि भगवान् मुझे कोई साम्राज्य न दे | क्योंकि अभी इस वक्त मैं खुद को पूरी तरह से सम्राट महसूस करता हूँ और सम्राट हूँ भी | लेकिन साम्राज्य मिल जाने पर कोई सम्राट नहीं रह जाता, बल्कि वह तो सेवक बन जाता है | युवक की बात सुनकर राजा हैरान रह गए | तब युवक ने कहा सच्चा सुख स्वतंत्रता में है | व्यक्ति संपत्ति से स्वतंत्र नहीं होता बल्कि भगवान् का चिंतन करने से स्वतंत्र होता है ऐसे में मुझे और सम्राट में बस मात्र संपत्ति का ही फासला होता है | बाकी सब कुछ तो मेरे पास भी है | युवक की बातें सुनकर राजा ने युवक को अपने सम्राट होने का परिचय दिया | युवक सम्राट समुद्रगुप का परिचय जानकर हैरान था |

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