Wednesday, 23 November 2016

समस्याओं से न भागिये




-: समस्याओं से न भागिये :- 

             अधिकतर लोग जीवन के सबसे महत्वपूर्ण सत्य की ओर से पीठ किये रहते है | वे संताप करते रहते हैं कि उनकी जिन्दगी में समस्याएं ही समस्याएं हैं | वे उनके बोझ की ही शिकायत करते रहते हैं | परिवार में, मित्रो में इसी बात का रोना रोते रहते हैं कि उनकी समस्याएं कितनी पेचीदी, कितनी दुखदायक है | यह न होती तो, उनका जीवन कितना सुखद और आसान होता | समस्याए हमारे साथ क्या करती है? वे अपने स्वरुप के अनुसार या उनके प्रति हमारी अपनी दृष्टि के अनुसार, हमारे मन में कभी निराशा तो कभी हताशा का भाव भरती हैं | कभी व्यथा को जन्म देती हैं और कभी अपराध-बोध या फिर कभी खेद को | जिन्दगी फूलों भरा रास्ता नहीं है | वह समस्याओं के काँटों से भरा है | लेकिन जीवन की राह फूलों भरी हो सकती है | इन्ही समस्याओं का सामना करने, उन्हें सुलझाने में जीवन का अर्थ छिपा हुआ है | समस्याएं तो दुधारी तलवार होती है | समस्याएं हमारे साहस, हमारी बुद्धिमता को ललकारती हैं और दुसरे शब्दों में हममें साहस और बुद्धिमानी का सृजन भी कराती हैं | मनुष्य की तमाम प्रगति, उसकी सारी उपलब्धियों के मूल में समस्याएं ही हैं | यदि जीवन में समस्याएं नहीं हो तो सायद हमारा जीवन नीरस ही नहीं, जड़ भी हो जाता | प्रख्यात लेखक बेंजामिन फ्रेंकलिन ने सही ही कहा था, ‘जो बात हमें पीड़ा पहुंचाती हैं, वही हमें सिखाती भी है |’ इसलिए समझदार लोग समस्याओं से डरते नहीं, उनसे दूर नहीं भागते, बल्कि वे समस्याओं के प्रति भी सकरात्मक नजरिया विकसित करते हैं | 


Tuesday, 22 November 2016

मनुष्य गुणों से उत्तम बनता है



 - : मनुष्य गुणों से उत्तम बनता है :-


हाय दोस्तों ... कैसे है आप ? बढ़िया न ? अरे होंगे भी क्यों नहीं !! चलिए नियमानुसार मैं फिर आप लोगो के लिए एक सुन्दर सा लघु प्रेरक कथा लेकर आया हूँ , उम्मींद है यह कहानी भी आपको पिछली बार की तरह ही पसंद आयेगी |

एक राजा को अपने लिए सेवक की आवश्यकता थी | उसके मंत्री ने दो दिनों के बाद एक योग्य व्यक्ति को राजा के सामने पेश किया | राजा ने उसे अपना सेवक बना तो लिया, पर बाद में मंत्री से कहा, वैसे तो यह आदमी ठीक है पर इसका रंग-रूप अच्छा नहीं है |  मंत्री को यह बात अजीब लगी पर वह चुप  रहा | एक बार गर्मी के मौसम में राजा ने उस सेवक को पानी लाने के लिए कहा | सेवक सोने के पात्र में पानी लेकर आया | लेकिन राजा ने जब पानी पिया तो पानी पिने में थोडा गर्म लगा | राजा ने कुल्ला करके फेक दिया | वह बोला, इतना गर्म पानी, वह भी गर्मी के इस मौसम में, तुम्हे इतनी भी समझ नहीं | मंत्री यह सब देख रहा था | मंत्री ने उस सेवक को मिटटी के पात्र में पानी लाने को कहा | राजा ने यह पानी पीकर तृप्ति का अनुभव किया | मंत्री ने राजा से पूछा, “महाराज, सोने के पात्र का पानी आपको अच्छा नहीं लगा| लेकिन मिटटी के पात्र का पानी क्यों अच्छा लगा ? राजा मौन रहा | 




इस पर मंत्री ने कहा, “महाराज बाहर को नहीं, भीतर को देखे | सोने का पात्र सुन्दर, मूल्यवान और अच्छा है, लेकिन शीतलता प्रदान करने का गुण इसमें नहीं है | मिटटी का पात्र अत्यंत साधारण है, लेकिन इसमें ठंडा बना देने की क्षमता है | कोरे रंग-रूप को न देखकर, गुण को देंखे | उस दिन से राजा का नजरिया बदल गया | राजा जनक भी अक्सर कहा करते थे, “मैं अपनी सभा में आते समय लोगों के वस्त्र देखकर उन्हें सम्मान देता हूँ पर जाते समय चरित्र को देखकर सम्मान देता हूँ |

तो देखा दोस्तों आपने दुनिया में हर मनुष्य एवं हर वस्तु की कीमत होती है | चाहे व कितनी भी छोटी या साधारण क्यूँ न हो | सभी हमारे जीवन में खास महत्व रखता है |

Monday, 24 October 2016

अपमान का स्थानान्तरण



               अपमान का रूपांतरण

नमस्कार दोस्तों ! कैसे है आप ? वादे के अनुसार मैं एक सुन्दर और प्रेरणादायक लघु कथा लेकर आपके सामने उपस्थित हुआ हु.. यह एक सच्ची घटना है दोस्तों जो अभी हाल ही में घटित हुआ है | जिसके बारे में बहुत लोग सुने और जानते होंगे | लेकिन कई लोगो को इसके बारे में अभी भी पता नहीं है | यह घटना वाकई में काफी प्रेरणादायक है जो एक मजदुर के दृढ़ निश्चय और हौसले पर आधारित है – तो आइये हम भी इस कहानी (घटना) पढ़कर इससे प्रेरणा ले|           
पिछले दिनों महाराष्ट्र राज्य के कई जिलो में भयंकर सुखा पडा था | ऐसे भयंकर सूखे के समय जब बापुराव ताजने नामक एक मजदुर की पत्नी गाँव में बड़े लोगो के एक कुएं से पानी भरने गई तो उन्होंने उसे मना कर दिया | कुछ बड़े लोगो के इस व्यवहार से बापुराव ताजने तिलमिला गए | वह क्रोध से भर उठा | उसे सारी रात नींद नहीं आई | उसके मन में इस अपमान का बदला लेने का विचार आया, लेकिन कैसे ? वह कुछ नहीं कर सकता था यह सोचकर और ज्यादा परेशान हो गया | ऐसी जिल्लत की जिंदगी से तो मौत अच्छी | तरह-तरह के नकरात्मक विचार उसे परेशान कर रहे थे कि तभी उसके मन में एक अन्य विचार कौंधा | क्यों न अपने लिए अलग कूंआ खोद लिया जाए ? बापुराव ताजने ने अपने मन में दृढ़ निश्चय कर लिया कि चाहे जो हो जाए वह अपना अलग कूंआ खोद कर ही रहेगा | अगले दिन बापुराव ताजने ने सभी लोगो को अपनी इच्छा के बारे में बतलाया और कूंआ खोदने में उनकी मदद मांगी | लोग उसकी इस विचित्र बात पर हंसने लगे, लेकिन बापुराव ताजने के मन में कूंआ खोदने का विचार कमजोर नहीं पढ़ा | उसने किसी की परवाह नहीं की और अकेले ही कूंआ खोद डालने का फैसला कर लिया | बापुराव ताजने ने दुसरे दिन ही एक ठीक-सी जगह देखकर कूंआ खोदना प्रारंभ कर दिया | वह लगातार चालीस दिन तक दिन-रात कूंआ खोदने में लगा रहा | एक दिन खुदाई करते समय जब उसने पाया कि नन्हे-नन्हे कई स्रोतों से पानी रिसता हुआ दिखलाई पढ़ रहा है तो उसकी प्रसन्नता की सीमा न रही | कुछ ही घंटो में कूंआ पानी से भर गया | 


तो आपने देखा दोस्तों -एक गरीब मजदुर आदमी का जिसकी समाज और मित्रो ने उसके विचारो एवं निश्चयो का न केवल मजाक उड़ाया, बल्कि उसकी मदद न करके उसे हतोत्साहित भी किया | लेकिन उन्होंने न सिर्फ उन लोगो की बातो को नजरअंदाज किया बल्कि अपने दृढ़ निश्चय पर अडिग रहे | दोस्तों – देखा जाय तो यह घटना हम आम आदमी की साथ अक्सर देखने को मिलती है | हमारे आसपास कई लोग ऐसे है जो वाकई में हमें सही सलाह देते है और हमारी मदद करते है | और कई लोग ऐसे भी होते है जिनसे हम उम्मीद तो रखते है लेकिन सही समय आने पर वे हमारी मदद तो नहीं करते उलटे हमारी परेशानियों का मजाक उड़ाते है | और हमें प्रोत्साहित करने की बजाय हमें हतोत्साहित करते है | लेकिन दोस्तों जो अपनी निश्चय पर अडिग रहता है मंजिल उन्ही को मिलती है , और अंत में दुनिया उन्ही को सलाम करती है | इसलिए हमें हमेशा अपने निश्चय-विचार और फैसलों पर अडिग रहना चाहिए .. प्रारंभ में जरुर मुश्किलें आ सकती है लेकिन अंत में जीत आपकी ही होगी दोस्तों |
So.. Best of Luck…



दोस्तों आपको ये प्रेरणादायक लघु कथा कैसी लगी ? जरुर बताइयेगा | मेरी मेल आई.डी - 1986.roshan@gmail.com है | आप लोगो की सुझावों का मुझे प्रतीक्षा रहेगी |

Tuesday, 18 October 2016

जीवन दर्शन में आपका स्वागत है !




नमस्कार दोस्तों .. ज्ञानवर्धक एवं प्रेरणादायक संग्रहों की दुनिया में आपका स्वागत है.. दोस्तों यह मेरी पहली कोशिश है | मन तो बहुत पहले से था की कुछ लिखू , पर समझ नहीं आ रहा था की ऐसा क्या लिखू जो दुसरो के काम आ सके और जिसे करते रहने में मुझे थकान और बोरियत भी महसूस ना लगे| मैं मयंक भारद्वाज जी का धन्यवाद् करना चाहता हु जिसके माध्यम से मुझे अपने अन्दर की कल्पनाओ एवं विचारो को इस ब्लॉग के द्वारा आप लोगो के सामने प्रस्तुत करने की प्रेरणा मिली| यह मेरी पहली प्रयास है, और संभव है इसमें कुछ त्रुटी एवं कमियाँ हो| पर यदि आप लोगो का प्रोत्साहन एवं मार्गदर्शन समय-समय पर मिलती रही तो मैं इस कार्य एवं प्रयास में काफी सुधार कर पाऊंगा| | उम्मीद है आप लोगो की सलाह एवं कमेंट मुझे समय-समय पर मिलता रहेगा | इसी आशा एवं उम्मीदों के साथ आप लोगो का पुनः बहुत- बहुत धन्यवाद् |


       आपका –
   रोशन दास महेंद्री 


{ रायपुर, छत्तीसगढ़ }