Sunday, 27 November 2016

पद से नहीं, इंसानियत से बड़ा बनिए |


दोस्तों कभी-कभी हमारे जीवन में ऐसे क्षण आते है जब हमें लगता है कि काश मैं इतनी हैसियत रखता की दुसरो की मदद कर पाता | और जब हम उस मुकाम को पा लेते है तो हमें अपने से छोटे लोगो की मदद करने में हीन भावना उत्पन्न होती है..हमें अपने मान-सम्मान, तथा अपनी ईज्जत का ख्याल आता है..  और इस प्रकार की बदलाव हमारे समाज में सदियों से चला आ रहा है.. किन्तु दोस्तों हमें याद रखना चाहिए की मनुष्य कभी भी धन,बल और पद से बड़ा या छोटा नहीं होता .. क्यूंकि ये स्थायी नहीं होते.. मनुष्य बड़ा होता है तो अपनी अच्छे कर्मो से, और अच्छे कर्म करने के लिए ना ही हमें अधिक धन और बल की आवश्यक्ता होती है और ना ही बड़े पद की | आवश्यकता है तो सिर्फ एक अच्छी सोच और एक दृढ़ विश्वास की | और इसके द्वारा हमें जो फल मिलता है वो अस्थायी होता है और जीवन में आगे चलकर कही न कही जरुर लाभ पहुंचाती है | इन्ही विचारो को प्रमाणित करने के लिए मैं आप लोगो के लिए एक सुन्दर सा लघु प्रेरक कथा लेकर आया हूँ , जो एक सत्य घटना है.. उम्मीद है आप लोगो को जरुर पसंद आएगी |

मुसलाधार वर्षा के साथ ठण्ड अपने चरम पर थी | इसी मौसम में एक अधेड़ दम्पति ने Filadelphiya के एक छोटे से होटल के Reception Clerk से एक कमरा देने का अनुरोध किया | Clerk ने अपनी मज़बूरी बता कर कहा कि सारे कमरे घिरे हुए है | दम्पति यह सुनकर निराश होकर बोले, ‘अब ऐसे मौसम में हम लोग कहाँ जाएं ?’ Receptionist ने कुछ देर सोचा और बोला कि अगर आपको ऐतराज ना हो, तो मेरा एक अपना छोटा सा साधारण कमरा है, आप उसमे रात गुजार सकते है | आगंतुक दम्पति ने उसको धन्यवाद् दिया और उसके कमरे में रात बिताई | सुबह जाते समय असुविधा में सोते हुए Receptionist Clerk को जगाना उचित न समझकर चले गए | इसके कई वर्षो बाद उस Clerk को एक पत्र मिला जिसके साथ Newyork की Flight की Ticket भी थी | आश्चर्यचकित-सा Clerk , Newyork पंहुचा तो उसने देखा उसके स्वागत में सालों पहले उसके कमरे में रात बिताने वाले वही महाशय खड़े थे | वह थे America के प्रसिद्ध न्यायाधीश “Willium Welford Austo” दुसरे दिन वे उसे अपने साथ लेकर Welford Austoria Hotel पहुचे | उन्होंने उस Clerk से कहा कि आज से आप इस Hotel के Manager हो | Clerk बोला – ‘मैं मामूली से Hotel में काम करने वाला Clerk क्या इतने बड़े Hotel का प्रबंध संभाल पाऊँगा ? न्यायाधीश ने कहा कि तुम साधारण नहीं हो | तुम्हारे अन्दर मानवता का, दया का ऐसा गुण है जो केवल असाधारण व प्रतिभावान व्यक्तियों में ही हो सकता है | 

 


तो देखा दोस्तों एक Clerk न कि अपने पद के कारण, बल्कि अपने अच्छे व्यवहारों के कारण उनकी मदद किये और उनके द्वारा किये गए अच्छे कर्म (सहायता) का फल उन्हें देर सही पर मिला जरुर. .. इसलिए दोस्तों हमें कभी भी, कहीं भी ऐसा मौका या अवसर मिले तो निसंकोच मदद के लिए आगे आना चाहिए | आप एक कदम बढाइये लोग आपको देखकर आपके साथ न चले तो कहना.....


So Best Of Luck...

Thursday, 24 November 2016

दिखावा नहीं, निःस्वार्थ प्रेम करना सीखो



     मैं अगर कहूँ कि तुम्हारा ईश्वर प्रेम एक दिखावा मात्र है, तो तुम नाराज हो जाओगे | उस प्रेम को एक शब्द भर कहूँ, तो तुम बिखर जाओगे | दरअसल इस तरह का प्रेम, प्रेम के त्रिकोण में नहीं ठहरता | यह तो एक जबरदस्ती है, जो तुम झूम झूमकर कर रहे हो | एक बार उठकर, कपडे झाड़कर अपने भीतर झांको | इस दृष्टी में रत्ती भर भी दृष्टीदोष न हो | सबको भले ही धोखा दो, मगर कम से कम अपने आप को धोखा मत देना | सर से पांव तक, शरीर से आत्मा तक स्वयं में झांको | देखो तुम्हारा प्रेम कहीं डर से तो नहीं है? कहीं नरक के खौलते तेल और धधकती आग से डर कर तो ईश्वर की तरफ नहीं भाग रहे हो? अगर तुममें डर के कारण प्रेम है तो यह प्रेम पहले दर्जे का झूठा है | जहाँ प्रेम होगा, वहां डर कहाँ होगा? प्रेम की दूसरी कड़ी को देखो | जब ह्रदय कहे कि तुम्हें ईश्वर ने क्या-क्या नहीं दिया | इसलिए उसे प्रेम करो, तो यह प्रेम सिर्फ व्यापार है | तुम भोजन, धन, घर, खुशियों के लिए कृतज्ञ होकर यदि ईश्वर से प्रेम करते हो तो यह दुसरे दर्जे का झूठा प्रेम है | ऐसा प्रेम किसी को ख़ुशी नहीं दे सकता | जो प्रेमभाव स्वार्थ पर टिका हो उसे ईश्वर के प्रेम में लाना गलत है | ईश्वर को प्रेम करो या न करो, वह अच्छा बुरा करता ही रहेगा | इसलिए प्रेम का यह रूप भी ईश्वर के निकट नहीं पहुँचता | अब आते हैं प्रेम की प्रतियोगिता पर | यदि तुम्हे लगता है कि ईश्वर से प्रेम में कोई तुमसे आगे है और कोई तुमसे पीछे, तो समझ लो कि तुम्हारा प्रेम खोखला है | ईश्वर से प्रेम करने में न तो डर और व्यापार माध्यम बनना चाहिए | और ना हि प्रतियोगिता | यह तो स्वतः निःस्वार्थ भाव से प्रगट होना चाहिए | यदि ऐसे प्रेम जिसमे निःस्वार्थ भाव न होकर अन्य तीनो (डर, व्यापार,प्रतियोगिता) का समावेश हो | वह प्रेम नहीं, एक छलावा मात्र है | और ऐसे छलावा-रूपी प्रेम से हम कभी भी ईश्वर की कृपा नहीं पा सकते |

 

Wednesday, 23 November 2016

समस्याओं से न भागिये




-: समस्याओं से न भागिये :- 

             अधिकतर लोग जीवन के सबसे महत्वपूर्ण सत्य की ओर से पीठ किये रहते है | वे संताप करते रहते हैं कि उनकी जिन्दगी में समस्याएं ही समस्याएं हैं | वे उनके बोझ की ही शिकायत करते रहते हैं | परिवार में, मित्रो में इसी बात का रोना रोते रहते हैं कि उनकी समस्याएं कितनी पेचीदी, कितनी दुखदायक है | यह न होती तो, उनका जीवन कितना सुखद और आसान होता | समस्याए हमारे साथ क्या करती है? वे अपने स्वरुप के अनुसार या उनके प्रति हमारी अपनी दृष्टि के अनुसार, हमारे मन में कभी निराशा तो कभी हताशा का भाव भरती हैं | कभी व्यथा को जन्म देती हैं और कभी अपराध-बोध या फिर कभी खेद को | जिन्दगी फूलों भरा रास्ता नहीं है | वह समस्याओं के काँटों से भरा है | लेकिन जीवन की राह फूलों भरी हो सकती है | इन्ही समस्याओं का सामना करने, उन्हें सुलझाने में जीवन का अर्थ छिपा हुआ है | समस्याएं तो दुधारी तलवार होती है | समस्याएं हमारे साहस, हमारी बुद्धिमता को ललकारती हैं और दुसरे शब्दों में हममें साहस और बुद्धिमानी का सृजन भी कराती हैं | मनुष्य की तमाम प्रगति, उसकी सारी उपलब्धियों के मूल में समस्याएं ही हैं | यदि जीवन में समस्याएं नहीं हो तो सायद हमारा जीवन नीरस ही नहीं, जड़ भी हो जाता | प्रख्यात लेखक बेंजामिन फ्रेंकलिन ने सही ही कहा था, ‘जो बात हमें पीड़ा पहुंचाती हैं, वही हमें सिखाती भी है |’ इसलिए समझदार लोग समस्याओं से डरते नहीं, उनसे दूर नहीं भागते, बल्कि वे समस्याओं के प्रति भी सकरात्मक नजरिया विकसित करते हैं | 


Tuesday, 22 November 2016

मनुष्य गुणों से उत्तम बनता है



 - : मनुष्य गुणों से उत्तम बनता है :-


हाय दोस्तों ... कैसे है आप ? बढ़िया न ? अरे होंगे भी क्यों नहीं !! चलिए नियमानुसार मैं फिर आप लोगो के लिए एक सुन्दर सा लघु प्रेरक कथा लेकर आया हूँ , उम्मींद है यह कहानी भी आपको पिछली बार की तरह ही पसंद आयेगी |

एक राजा को अपने लिए सेवक की आवश्यकता थी | उसके मंत्री ने दो दिनों के बाद एक योग्य व्यक्ति को राजा के सामने पेश किया | राजा ने उसे अपना सेवक बना तो लिया, पर बाद में मंत्री से कहा, वैसे तो यह आदमी ठीक है पर इसका रंग-रूप अच्छा नहीं है |  मंत्री को यह बात अजीब लगी पर वह चुप  रहा | एक बार गर्मी के मौसम में राजा ने उस सेवक को पानी लाने के लिए कहा | सेवक सोने के पात्र में पानी लेकर आया | लेकिन राजा ने जब पानी पिया तो पानी पिने में थोडा गर्म लगा | राजा ने कुल्ला करके फेक दिया | वह बोला, इतना गर्म पानी, वह भी गर्मी के इस मौसम में, तुम्हे इतनी भी समझ नहीं | मंत्री यह सब देख रहा था | मंत्री ने उस सेवक को मिटटी के पात्र में पानी लाने को कहा | राजा ने यह पानी पीकर तृप्ति का अनुभव किया | मंत्री ने राजा से पूछा, “महाराज, सोने के पात्र का पानी आपको अच्छा नहीं लगा| लेकिन मिटटी के पात्र का पानी क्यों अच्छा लगा ? राजा मौन रहा | 




इस पर मंत्री ने कहा, “महाराज बाहर को नहीं, भीतर को देखे | सोने का पात्र सुन्दर, मूल्यवान और अच्छा है, लेकिन शीतलता प्रदान करने का गुण इसमें नहीं है | मिटटी का पात्र अत्यंत साधारण है, लेकिन इसमें ठंडा बना देने की क्षमता है | कोरे रंग-रूप को न देखकर, गुण को देंखे | उस दिन से राजा का नजरिया बदल गया | राजा जनक भी अक्सर कहा करते थे, “मैं अपनी सभा में आते समय लोगों के वस्त्र देखकर उन्हें सम्मान देता हूँ पर जाते समय चरित्र को देखकर सम्मान देता हूँ |

तो देखा दोस्तों आपने दुनिया में हर मनुष्य एवं हर वस्तु की कीमत होती है | चाहे व कितनी भी छोटी या साधारण क्यूँ न हो | सभी हमारे जीवन में खास महत्व रखता है |